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पाठ्यक्रम -
विभिन्न बंधन दलों के आधार पर ठोसों का वर्गीकरण आणविक, आयनिक, सहसंयोजक और धात्विक ठोस, क्रिस्टलीय और अक्रिस्टलीय ठोस, द्विविमीय एवं त्रिविमीय क्रिस्टल जालक एवं एकक कोष्ठिकाएँ, संकुलन क्षमता, एकक कोष्ठिका का घनत्व परिकलन, ठोसो में संकुलन, रिक्तियां, घनीय एकक कोष्ठिकाएँ में प्रति एकक कोष्ठिकाएँ परमाणुओं की संख्या, बिंदु दोष, विद्युतीय एवं चुंबकीय गुण धातुओं का बैंड सिद्धांत चालक, अर्धचालक तथा कुचालक एवं n और p प्रकार के अर्धचालक।
परिचय -
संपूर्ण ब्रह्मांड द्रव्य तथा उर्जा से बना है। द्रव्य ब्रह्मांड का निर्माण करने वाला कारक है जबकि ऊर्जा इसकी क्रियाओं को संचालित करने वाला कारक है। विभिन्न प्रयोगों तथा सिद्धांतों के आधार पर यह तथ्य सिद्ध हो चुका है कि द्रव्य का निर्माण अति सूक्ष्म कणों से मिलकर होता है।
ये कण परमाणु, आयन अथवा अणु हो सकते हैं। यह कण एकाकी नहीं रहते। वरन हमारे द्वारा प्रयोग किए जा रहे द्रव्य के घटक में असंख्य घटक कण होते हैं तथा इन कणों के मध्य कार्य करने वाले अंतर आण्विक बल इन्हें एक विशिष्ट भौतिक अवस्था प्रदान करते हैं। पृथ्वी पर पाई जाने वाली द्रव्य की तीन भौतिक अवस्थाएं, ठोस द्रव तथा गैस हैं।
पदार्थ के बहने के गुण के आधार पर द्रव्य को दो भागों दृढ़ तथा तरल में बांटा गया है। ठोस पदार्थ दृढ़ कहलाते हैं क्योंकि इन में बहने का गुण नहीं होता जबकि द्रव तथा गैस को संयुक्त रूप से तरल कहते हैं।
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| Solid State Introduction |
भौतिक अवस्था को निर्धारित करने वाले कारक-
ताप तथा दाब की दी गई दशाओं में पदार्थ की भौतिक अवस्था दो विपरीत कारकों द्वारा निर्धारित होती है
१. अंतर आणविक बल
२. तापीय ऊर्जा |
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| Factor Governing Physical State |
आदर्श गैसीय अवस्था में अंतर आणविक बल अनुपस्थित होते हैं तथा प्रत्येक अणु या परमाणु स्वतंत्र अवस्था में गति करते हैं परंतु वास्तव में ऐसी कोई गैस ज्ञात नहीं है सामान्य परिस्थितियों में अंतर आणविक बल बहुत दुर्बल होते हैं जैसे जैसे इन बलों की शक्ति बढ़ती है वैसे-वैसे पदार्थ क्रमशः द्रव तथा ठोस अवस्था प्राप्त करता है अर्थात पदार्थ गैसीय अवस्था से ठोस अवस्था में परिवर्तित होने लगता है|
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| State of Solid, Liquid & Gas |
अंतरराष्ट्रीय बलों की शक्ति जैसे-जैसे बढ़ती है पदार्थ ठोस अवस्था प्राप्त करने का प्रयास करता है जिसके घटक इकाइयों की स्थानांतरित गति रुक जाती है ताप ऊर्जा में वृद्धि होने पर कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है कथाकार अधिक गतिशील हो जाते हैं जिससे पदार्थ द्रव्य गैस अवस्था प्राप्त करने का प्रयास करता है।
ठोस अवस्था-
ठोस अवस्था द्रव्य के घटक गणों द्वारा प्राप्त वह अवस्था है जिसमें अंतरा आणविक बल इतने प्रबल होते हैं कि उनकी स्थानांतरित गति रुक जाती है यद्यपि इन घटक कणों की कंपन गति तथा घूर्णन गति होती रहती है ठोसों में घटक कणों की व्यवस्था इस प्रकार होती है कि निकाय न्यूनतम कुल स्थितिज ऊर्जा की अवस्था प्राप्त कर लेता है |
मुक्त गैसीय घटक कणों से ठोस अवस्था प्राप्त करने में मुक्त ऊर्जा जालक ऊर्जा कहलाती है किसी ठोस की जालक ऊर्जा जितनी अधिक होती है उस निकाय की ऊर्जा उतनी ही कम होती है तथा ठोस उतना ही अधिक स्थाई होता है ठोस अवस्था का गुण इसकी संपीड्यता, दृणता तथा यांत्रिक शक्ति होती है|
ठोसों के गुण-
1. ठोस पदार्थ दृण होते हैं इनका घनत्व तथा यांत्रिक शक्ति उच्च होती है|
2. इनका आकार द्रव्यमान तथा आयतन निश्चित होता है इनका निश्चित आकार उस बर्तन के आकार पर निर्भर नहीं करता जिस में इन्हें रखा गया हो।
3. प्रबल अंतर आण्विक बल के कारण घटक कणों की स्थितियां निश्चित होती है यह स्थानांतरित गति नहीं करते जबकि इनकी अक्ष पर कंपन तथा घूर्णन गतियां होती रहती हैं|
4. गर्म करने पर ठोस पदार्थ द्रव में परिवर्तित हो जाते हैं।



